Thursday, December 22, 2011

मैं आ रहा हूं मां


इन नौ महीनों का अनुभव हर स्त्री के लिए अलग होता है और एक जैसा भी। बच्चा अपनी मां से बात करता है और मां भी बच्चे को जवाब देती है।

जीवन में मातृत्व सुख एक स्त्री के लिए ईश्वरीय वरदान है। मातृत्व सुख ही स्त्री को संपूर्ण स्त्री का दर्जा देता है। इस सुख को हासिल कर वह खुद को भाग्यशाली मानती है। इस सुख के लिए स्त्री आंखों में न जाने कितने सपने बुनती है। नौ महीने तक बच्चे को अपने भीतर रखने की कल्पना से ही रोमांचित हो उठती है। इन नौ महीनों में मां और बच्चे के बीच गहरा सामंजस्य होता है। मां उसकी आवाज़ और जरूरतों को समझ लेती है, उसकी अठखेलियों को महसूस करती है। इन नौ महीनों का अनुभव हर स्त्री के लिए अलग-अलग होता है। बच्चा अपनी मां से बात करता है और मां भी बच्चे का जवाब देती है। दोनों के बीच चलने वाले संवाद की भाषा या तो मां समझती है या फिर उसके भीतर पल रहा उसी का अंश। इन अद्भुत नौ महीनों का अनुभव एक मां की कलम सेः

मैं एक मां जब भी उन दिनों को याद करती हूं, जब मेरा अंश जो आज मेरे सामने तुतलाती जबान को संभालता हुआ अपनी बात को रखता है। उसके पहले नौ महीने कितने अलग थे। उसकी भाषा सिर्फ मैं समझती थी, भला प्यार को भी किसी ज़बान की जरूरत होती है।

अपने भीतर पल रही एक नई ज़िंदगी का ख्याल ही स्त्री के जीवन में नई उमंग और आशाओं का संचार करने लगता है। वह अपने शरीर में होने वाले बदलावों को महसूस करती है और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए अच्छे विचारों और अच्छे संस्कारों की नींव रखने में अपना ज्यादातर वक्त गुजारती है। जैसे-जैसे शरीर में बदलाव होते जाते हैं वैसे-वैसे मां और बच्चे में गहरा और मजबूत रिश्ता कायम होता जाता है। और यूं ही बीतता है- उसका दूसरा महीना और तीसरा महीना। अब बारी आती है उन नन्हें-नन्हें पैरों की चुलबुलाहट को महसूस करने की। चौथे महीने उसे बच्चे की धड़कन का एहसास मधुर संगीत की भांति लगता है। ऐसा लगता है कि किसी ने मीठी धुन छेड़ दी हो। उसी धड़कन द्वारा वह अपनी मां से कहता है कि मैं आ गया/गई हूं। उसकी अठखेलियां जब मां को गुदगुदाती है तो लगता है कि तन में एक नई लहर दौड़ रही है। हर दिन एक नया बदलाव, एक नई चहल-पहल मातृत्व सुख में वृद्धि करती जाती है। मां अपनी इस अवस्था के एक-एक पल का भरपूर आनंद उठाती है। पांचवें महीने में गर्भस्थ शिशु धीरे-धीरे हिलना-डुलना शुरू कर देता है। उसकी पूरी दुनिया होती है मां की कोख। उस दौरान मां अच्छा संगीत सुनती है, अच्छी किताबें-कहानियां पढ़ती है और अच्छे विचार अपने दिमाग में लाती है ताकि बच्चे में भी उन सारे गुणों का विकास हो। छठा महीना मां के लिए उसकी हलचल को महसूस करने का होता है। वह अपने नन्हें-नन्हें हाथ-पैर मारकर मां के शरीर में एक रोमांचक अनुभूति कराता है। जैसे कि कुछ सीखने की कोशिश कर रहा हो। वह हाथ-पैर चलाता है ताकि मां उसे महसूस कर सके। अब बारी आती है सातवें महीने की। बच्चा अपनी दिनचर्या मुताबिक अपने आपको सक्रिय रखता है। इस वक्त मां को थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। जैसे-जैसे दिन गुजरते हैं, वैसे-वैसे बच्चे का आकार भी बढ़ता जाता है। एक औरत के लिए मातृत्व सुख अलौकिक व अद्भुत होता है। बच्चे का स्पर्श अब साफतौर पर दिखाई देता है- आठवें और नौवें महीने में। यह समय गर्भवती स्त्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। इन दो महीनों के दौरान बच्चा अपनी हरकतों में ज्यादा सक्रिय रहता है। वह बाहर आने का रास्ता बनाने में जुट जाता है। वह अपनी हरकतों द्वारा मां को जताता है कि अब वक्त हो चुका है- दुनिया में आने का। मां इस संकेत को समझ जाती है और बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगती है, जब बच्चा उसकी गोद में आएगा। वह मन ही मन उसके रोते-हंसते सुनने लगती है। आखिरकार, वह जीवन और मृत्यु के संघर्ष से गुजरकर अपने भीतर पल रहे उस नवजीवन को जन्म देती है। वह क्षण अद्वितीय होता है जब मां प्रसव के बाद पहली बार अपने बच्चे का चेहरा देखती है। उस पल वह दुनिया की सबसे ज्यादा भाग्यशाली महिला होती है।