Monday, August 11, 2014

रघुवीर यादव

रंगमंच के कलाकार रघुवीर यादव जब मुंगेरी लाल बनकर हसीन सपने दिखाते हैं तो कहीं मुल्ला नसरुद्दीन बनकर मिर्ज़ा के रंग में भंग डालते हैं या फिर मैसी साहब बनकर नकली वाउचर्स बनाने का आइडिया देते हैं। वहीं पर लगान का भूरा जब हिटलर की भूमिका में आता है तो वह उसके अनछुए पहलू से प्रभावित हो उठता है।




मुल्ला नसरुद्दीन धारावाहिक में जोहरा सहगल के साथ काम करने का मौका मिला? कैसा लगा?
बहुत ही अच्छा। जोहरा जी रंगमंच की बहुत ही मंझी हुई अदाकार थी। वह 14 साल तक पृथ्वी थिएटर के साथ सक्रिय रहीं । जोहरा जी बहुत ज़िंदादिल इंसान और स्फूर्ति से लबरेज थीं। इसकी शूटिग मई-जून के महीने में हो रही थी वो भी राजस्थान में। आप तो जानते हैं कि राजस्थान की गर्मी कैसी होती है, लेकिन उस वक्त वह बहुत हंसी-खुशी के साथ अपना काम किया करती थीं। उस उम्र में उनकी ऊर्ज़ा को देLकर हम जैसे नौ जवानों को पसीना आ जाता था। जब कि रिहर्सल करते वक्त वे उतनी ही ऊर्ज़ावान दिखाई देती थीं। उनके काम करने का तरीका बहुत ही बेहतरीन था। वे रंगमंच की कलाकार भी थीं, इसलिए वे रिहर्सल की बारिकियों पर भी बहुत ध्यान देती थीं। उनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला।

क्लब- 6० में फारूख शेख के साथ काम करना कैसा रहा ?
बहुत ही बेहतरीन इंसान थे। उनके साथ भी काम करने का मौका मिला बहुत ही अच्छा अनुभव था। वे बहुत ही शांत और अच्छे स्वभाव के थे। मुझे उनकी एक बात बहुत अच्छी लगती थी, किसी भी तरह का तनाव का माहौल हो जाता था पर वो कभी अपना टेम्पर लूज़ नहीं करते थे, बल्कि शांत रहते थे।

आपने आमिर के साथ लगान, पिपली लाइव जैसी फिल्में की है। आमिर खान को मि. पर्फेक्शनिस्ट कहते हैं, आप इस बात से कितना सहमत हैं ?
बिल्कुल सहमत हूं। उन्होंने कई फिल्में प्रोड्यूस की हैं और उनके काम करने का तरीका भी बहुत अलग है। वे अपनी पूरी यूनिट का ख्याल रखते हैं, यह बात दूसरों प्रोड्यूसरों में कम दिखाई देती है। इतना ही नहीं, फिल्म की बेहतरी के लिए यूनिट के छोटे से छोटे व्यक्ति की राय लेते हैं। जो बोल दिया वही फाइनल हो गया, उनके अंदर कभी भी ऐसी भावना नहीं आती।

जयपुर आना और यहां रविन्द्र मंच पर बच्चों के साथ काम करने के अनुभव के बारे में कुछ बताइए।
यहां आना बहुत अच्छा लगा। मैं बहुत दिनों के बाद थिएटर की ओर आया हूं, लेकिन मैं अबकी बार प्ले में म्यूज़िक दे रहा हूं और इसी सिलसिले में जयपुर आना हुआ। बच्चे भी बहुत मेहनत और लगन से काम कर रहे हैं। य़ह देखकर बहुत खुशी हुई।

आप रंगमंच के कलाकार हैं और आपने हिदी कॉमर्शियल और धारावी, मैसी साहब, माया मेमसाहब जैसी ऑफबीट फिल्मों में भी काम किया है। अब ऑफबीट फिल्में ज्यादा नहीं बनती, इसकी क्या वजह है?
लोगों ने फिल्मों को कॉमर्शियल बिजनेस बना दिया है। ऐसा नहीं कि कहानी नहीं है। हमारे हिदुस्तान में कहानियों की कमी नहीं। गली-महोल्ले-कस्बे-गांव में हर जगह कहानी मिलती है। अगर कोई करना चाहे तो बहुत कुछ कर सकते हैं। लोग अब भी अच्छी स्क्रिप्ट ला सकते हैं। पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है और अब भी लिखा जा रहा है। जाहिर है कि पढ़ने-लिखने का भी एक दायरा होता है। पहले भी तो लोग लिखते रहे हैं और अब भी लोग लिख रहे हैं। साउथ और हॉलीवुड की फिल्में कॉपी कर रहे हैं और यही वजह है कि फिल्मों में गिरावट होने लगी है वो भी क्वॉलिटी वाइस।
   
ऐसा सुना है कि आप अपनी आत्मकथा लिख रहे हैं ?
हां जी। लिखने की कोशिश कर रहा हूं। थोड़ा बहुत लिखा है, जल्दी ही लिखूंगा।

आपने फिल्म गांधी टू हिटलर में हिटलर की भूमिका की थी, इस फिल्म में हिटलर का कौन-सा पहलू आपको प्रभावित कर गया?
आमतौर पर हम हिटलर को क्रूर और तानाशाह मानते हैं, लेकिन मुझे हिटलर के अंदर एक ऐसा इंसान दिखा जो अपने वतन के लिए कुछ भी करने को तैयार था। अपने वतन की खूबसूरती के लिए उसने बहुत सारे काम किए। जैसे कि सुंदर पुल बनवाए और बाद में तोड़ दिए गए। हिटलर ने मरने से पहले अपनी प्रेमिका इवा ब्राउन से शादी की। वह नहीं चाहता था कि मरने के बाद उसकी प्रेमिका की दुर्गति और बदनामी हो। अपने वतन और अपनों के लिए वह कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहता था। उसका इस पहलू से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ।

आप कल्याण सिरवी की फिल्म साको-363 के बारे में कुछ बताइए।
हां, एक साल पहले की शूटिग की थी। यह राजस्थान पर आधारित फिल्म ह, लेकिन अभी इसका कुछ पता नहीं।